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शनिवार, 13 मार्च 2010

उत्पीड़न से कम उम्र में 'बुढ़ापा'






शोध ने बच्चों की कोशिकीय संरचना का अध्ययन किया


अमरीका मे हुए एक शोध में पता चला है कि वे लोग जो बचपन मे उत्पीड़न का शिकार हुए है उन पर उम्र की छाप जल्दी चढ़ती है.



इस शोध से पता चला है कि जो लोग कम उम्र मे मानसिक उत्पीडन का शिकार होते है उनकी कोशिकीय संरचना मे बदलाव आता है.



बीबीसी संवाददाता जैक इज़्ज़ार्ड का कहना है कि डॉक्टरों को ये लंबे अरसे से पता था जिन लोगों का बचपन किसी भी तरह के उत्पीड़न के साए में बीता है, वे गंभीर भावनात्मक नुक़सान से जूझते हैं.



लेकिन इस नए शोध से एक नई और आश्चर्यजनक बात पता चली है. और वो ये कि इस परिस्थिति में उनकी कोशिकाएँ जल्दी बूढ़ी हो जाती हैं.




ब्राउन विश्वविद्यालय मे काम कर रहे शोधकर्ताओं का ये शोध व्यक्ति के डीएनए अणु पर आधारित है. इस डीएनए अणु का नाम है टिलोमीयर्स है जो हमारे क्रोमोज़ोम यानी गुणसूत्र के अंतिम छोरों को बांधे रखते हैं.

वैज्ञानिक इसकी तुलना जूते के फीतों के किनारे पर लगे प्लासिटक के छोटे टुकड़ों से करते हैं जो उनको खुलने से रोकता है.

जैसे-जैसे हमारी उम्र बढती है, टिलोमीयर्स छोटे होते जाते है और हमारी कोशिकाएँ मरती जाती हैं.


शोध
पहले के शोध से ये पता चलता था कि इस तरह से उम्र बढने की प्रक्रिया सिगरेट पीने या फिर विकिरण के कारण होती थी लेकिन अब इस शोध ने एक नई बात सामने रखी है.



शोध से पता चला है कि ज़िंदगी के शुरुआती दिनों में अगर किसी तरह का मानिसक उत्पीड़न हुआ है तो उसका प्रभाव भी लगभग वैसा ही होता है.



उन वयस्कों मे टिलोमीयर्स जल्दी छोटे हो गए जिनका बचपन खुशहाल नहीं बीता.

हालांकि इस शोध के पूरे प्रभाव पर अभी जानकारी नहीं मिली है और कुछ कोशिकीय जैव वैज्ञानिकों ने भी आगाह किया है कि ये शोध बहुत कम लोगों पर किया गया है इसीलिए परिणामों पर पूरा भरोसा नहीं किया जा सकता है.



लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि जिन लोगों का बचपन कठिन परिस्थितियों में गुज़रा, उनके लिए परेशानी आगे भी खड़ी मिलती है.

शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2009

देश के हर नागरिक को पेंशन मिलेगी




Feb 19, 09:36 pm

पेंशन क्षेत्र की नियामक एजेंसी-पेंशन फंड नियामक विकास प्राधिकरण [पीएफआरडीए] की यह योजना सफल रही तो देश के हर नागरिक को पेंशन मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा। कोई संगठित क्षेत्र में काम करे या असंगठित क्षेत्र में, वह पेंशन पाने का हकदार होगा। पीएफआरडीए ने इस योजना को अमली जामा पहनाने का काम शुरू कर दिया है। इस महत्वाकांक्षी योजना के पहले चरण को अगले वित्त वर्ष 2009-10 की शुरुआत से लागू किया जाएगा। इस बात की जानकारी पीएफआरडीए की अधिशासी निदेशक मीना चतुर्वेदी ने गुरुवार को यहां एसोचैम की तरफ से आयोजित एक सेमिनार में दी।


चतुर्वेदी ने बताया कि इस योजना को एक अप्रैल, 2009 से लागू करने की तैयारी है। पहले चरण में लगभग 8 करोड़ लोगों को इसका लाभ मिलेगा। इसमें असंगठित क्षेत्र के मजदूर भी शामिल हैं। उन्होंने बताया कि असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को पेंशन देने के लिए विशेष व्यवस्था की जा रही है। इसके लिए केंद्र सरकार की तरफ से 1800 करोड़ रुपये भी उपलब्ध कराए गए हैं। उन्होंने बताया कि पेंशन फंड के प्रबंधन के लिए पीएफआरडीए ने छह प्रबंधकों की नियुक्ति की है। इसके अलावा 23 अन्य एजेंसियों की नियुक्ति की जानी है, ताकि पेंशन योजनाओं को दूरदराज के इलाकों में और समाज के निचले तबके तक पहुंचाया जा सके।

देश की 87 फीसदी आबादी को अभी भी पेंशन की कोई सुविधा नहीं है। प्राधिकरण इस बात के लिए प्रयास करेगा कि आम आदमी में पेंशन को लेकर जागरूकता पैदा हो। चतुर्वेदी के मुताबिक इसके लिए विशेष अभियान शुरू किया जाएगा, ताकि हर नागरिक और असंगठित क्षेत्र के हर एक श्रमिक को पेंशन की सुविधा मिल सके। पूरी स्थिति पर कड़ाई से नजर रखी जाएगी ताकि कोई गड़बड़ी न हो। इसके लिए पीएफआरडीए शीघ्र ही विस्तृत दिशानिर्देश लागू करने वाला है।


उधर, सेमिनार में बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण [इरडा] के सदस्य [एक्चुअरी] आर. कानन ने भी कहा है कि पेंशन फंड प्रबंधकों को अपने कामकाज को लेकर काफी सावधानी बरतनी होगी। उन्हें हर तीन महीने पर अपनी बैलेंस शीट सार्वजनिक करनी होगी। इरडा दरअसल, सत्यम कंप्यूटर्स कांड के बाद कोई जोखिम नहीं लेना चाहता है, इसलिए वह पहले से ही सख्त प्रावधान लाना चाहता है। कानन ने धमकी भरे स्वर में कहा भी कि अगर किसी निजी पेंशन फंड प्रबंधक ने कोई गड़बड़ी की तो उसका विलय सरकारी क्षेत्र के फंड प्रबंधक के साथ कर दिया जाएगा।

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]।

गुरुवार, 18 दिसंबर 2008

वृद्धों के लिए राष्ट्रीय नीति

नीतियाँ और योजनाएँ



कुछ वर्षों से सरकार ने वृद्ध व्‍यक्तियों के लिए कई योजनाएं और नीतियां शुरू की हैं। इन योजनाओं और नीतियों का प्रयोजन देश के वरिष्‍ठ नागरिकों की आरोग्‍यता, कल्‍याण और आत्‍म-निर्भरता को बढ़ावा देना है। ऐसे कुछ कार्यक्रमों का उल्‍लेख नीचे किया गया है।

केंद्र सरकार ने भारत में वरिष्‍ठ नागरिकों के आरोग्‍यता और कल्‍याण को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1999 में वृद्ध सदस्‍यों के लिए राष्‍ट्रीय नीति तैयार की है। इस नीति का उद्देश्‍य व्‍यक्तियों को स्‍वयं के लिए तथा उनके पति या पत्‍नी के बुढ़ापे के लिए व्‍यवस्‍था करने के लिए प्रोत्‍साहित करना है इसमें परिवारों को अपने परिवार के वृद्ध सदस्‍यों की देखभाल करने के लिए प्रोत्‍साहित करने का भी प्रयास किया जाता है। यह नीति स्‍वैच्छिक एवं गैर-सरकारी संगठनों को परिवार द्वारा की जा रही देखभाल की अनुपूर्ति करने और असुरक्षित वृद्ध व्‍यक्तियों की देखभाल और सुरक्षा की व्‍यवस्‍था करने में मदद करती है। इस नीति के तहत स्‍वास्‍थ्‍य देख-रेख, अनुसंधान जागरूकता लाने और वृद्ध व्‍यक्तियों की देख-रेख करने वालों के लिए प्रशिक्षण सुविधाओं का भी उल्‍लेख किया गया है। इस नीति का मुख्‍य उद्देश्‍य वृद्ध व्‍यक्तियों को पूरी तरह से आत्‍म-निर्भर नागरिक बनाना है।

इस नीति के कारण कई योजनाएं शुरू की गई हैं जैसे कि –

1. प्राथमिक देख-रेख प्रणाली को सुदृढ़ बनाना, जिससे वे वृद्ध व्‍यक्तियों की स्‍वास्‍थ्‍य रक्षा की जरुरतों को पूरा कर सकें।
2. वृद्ध व्‍यक्तियों की स्‍वास्‍थ्‍य रक्षा के संबंध में चिकित्‍सा और सहायक चिकित्‍सा कार्मिकों को प्रशिक्षण तथा परिचय
3. स्‍वस्‍थ रहते हुए बुढ़ापे की ओर बढ़ने की धारणा को बढ़ावा देना
4. वृद्ध-चिकित्‍सा संबंधी सामग्री के उत्‍पादन और विवरण के लिए समितियों को सहायता.
5. अस्‍पतालों में वृद्ध रोगियों के लिए पृथक लाइनों और शैया के आरक्षण की व्‍यवस्‍था
6. अंत्‍योदय योजना के तहत अधिक से अधिक लोगों को शामिल करना और इस बात पर जोर देना कि वृद्ध व्‍यक्तियों, खासकर जो विस्‍थापित हैं, कमजोर वर्गों से संबंध रखते हैं, के कल्‍याण के लिए सस्‍ती दरों पर भोजन की व्‍यवस्‍था करना।

वृद्ध व्‍यक्तियों के लिए समेकित कार्यक्रम एक ऐसी योजना है जिसमें 31 मार्च, 2007 की स्थिति के अनुसार गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) को परियोजना लागत की 90 प्रतिशत तक की राशि की वित्‍तीय सहायता प्रदान की जाती है। यह राशि वृद्धाश्रम, दिवस देखभाल केंद्र, चलते-फिरते चिकित्‍सा यूनिट स्‍थापित करने और उनकी रखरखाव करने और वृद्ध व्‍यक्तियों की अन्‍य जरुरतों जैसे कि परिवार को प्रबलित और सुदृढ़ बनाना, संबंधित मुद्दों पर जागरूकता लाना और बुढ़ापे को खुशहाल बनाना आदि को पूरा करने के लिए भी कार्य करती है।

सरकार का अन्‍य कार्यक्रम पंचायती राज संस्‍थाओं स्‍वैच्छिक संगठनों और स्‍व-सहायता समूहों की वृद्धाश्रमों और वृद्ध व्‍यक्तियों के लिए बहु सेवा केंद्रों के निर्माण के लिए सहायता प्रदान करने की योजना है। इस योजना में निर्माण के लिए एक बारगी अनुदान प्रदान किया जाता है।

केंद्रीय सरकार स्‍वास्‍थ्‍य योजना केंद्रीय सरकार के कार्यालयों के पेंशनभोगियों को पुरानी बीमारियों के लिए लगातार तीन महीने तक इलाज करने की सुविधा प्रदान करती हैं। अधिक जानकारी के लिए, यहां क्लिक करें।

राष्‍ट्रीय मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम में एल्‍जाइमर और अन्‍य विक्षिप्तियों, पार्किन्‍सन रोग, अवसाद और वृद्धावस्‍था मनोविकार रोग से ग्रस्‍त वरिष्‍ठ नागरिकों की जरुरतों पर ध्‍यान दिया जाता है।

नई योजनाएं

जी हां, वित्‍तीय सुरक्षा की यात्रा यहीं समाप्‍त नहीं हो जाती। केंद्र सरकार वरिष्‍ठ नागरिकों के हित के लिए और नई-नई योजनाएं और स्‍कीमें बना रही है। वर्ष 2007-08 के बजट, में वित्‍त मंत्री ने वरिष्‍ठ नागरिकों को मासिक आय प्रदान करने और नई स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजनाएं विकसित करने का प्रस्‍ताव किया है।

वरिष्‍ठ नागरिकों के हित के लिए यह प्रस्‍ताव किया गया है कि –

* राष्‍ट्रीय आवास बैंक एक 'प्रत्‍यावर्ती गिरवी (रिवर्स मार्टगेज) योजना शुरू करेगा जिसके तहत वह वरिष्‍ठ नागरिक जिसके पास अपना मकान है, मकान को गिरवी रखकर मासिक आय प्राप्‍त कर सकता है। वह वरिष्‍ठ नागरिक उस मकान का स्‍वामी बना रहेगा और ऋण का भुगतान अथवा शोधन किए बिना जीवन भर मकान उसके ही कब्‍जे में रहेगा। गिरवी गारंटी कंपनियों के सृजन की मंजूरी देने के लिए विनियम लागू किए जांएगे।
* राष्‍ट्रीय बीमा कंपनी द्वारा वरिष्‍ठ नागरिकों के लिए एकमात्र स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजना लागू की जाएगी। चिकित्‍सा बीमा खंड में यथा उल्लिखित तीन अन्‍य सरकारी क्षेत्र बीमा कंपनियां भी वरिष्‍ठ नागरिकों के लिए ऐसी ही कोई योजना लागू करेंगी।
* माता-पिता एवं वरिष्‍ठ नागरिक भरण-पोषण विधेयक, 2007 – यह विधेयक हाल ही में संसद में पेश किया गया है। इसमें माता-पिता के भरण-पोषण, वृद्धाश्रमों की स्‍थापना, चिकित्‍सा सुविधा की व्‍यवस्‍था और वरिष्‍ठ नागरिकों के जीवन और सं‍पत्ति की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है।

वरिष्‍ठ नागरिकों के लिए इन नई गतिविधियों का प्रयोजन उन्‍हें बेहतर, शान्तिमय और वित्‍तीय दृष्टि से सुदृढ़ जीवन प्रदान करना है।

- भारत का राष्ट्रीय पोर्टल

वृद्धों के लिए राष्ट्रीय नीति


नीतियाँ / योजनाएँ



कुछ वर्षों से सरकार ने वृद्ध व्‍यक्तियों के लिए कई योजनाएं और नीतियां शुरू की हैं। इन योजनाओं और नीतियों का प्रयोजन देश के वरिष्‍ठ नागरिकों की आरोग्‍यता, कल्‍याण और आत्‍म-निर्भरता को बढ़ावा देना है। ऐसे कुछ कार्यक्रमों का उल्‍लेख नीचे किया गया है।

केंद्र सरकार ने भारत में वरिष्‍ठ नागरिकों के आरोग्‍यता और कल्‍याण को बढ़ावा देने के लिए वर्ष 1999 में वृद्ध सदस्‍यों के लिए राष्‍ट्रीय नीति तैयार की है। इस नीति का उद्देश्‍य व्‍यक्तियों को स्‍वयं के लिए तथा उनके पति या पत्‍नी के बुढ़ापे के लिए व्‍यवस्‍था करने के लिए प्रोत्‍साहित करना है इसमें परिवारों को अपने परिवार के वृद्ध सदस्‍यों की देखभाल करने के लिए प्रोत्‍साहित करने का भी प्रयास किया जाता है। यह नीति स्‍वैच्छिक एवं गैर-सरकारी संगठनों को परिवार द्वारा की जा रही देखभाल की अनुपूर्ति करने और असुरक्षित वृद्ध व्‍यक्तियों की देखभाल और सुरक्षा की व्‍यवस्‍था करने में मदद करती है। इस नीति के तहत स्‍वास्‍थ्‍य देख-रेख, अनुसंधान जागरूकता लाने और वृद्ध व्‍यक्तियों की देख-रेख करने वालों के लिए प्रशिक्षण सुविधाओं का भी उल्‍लेख किया गया है। इस नीति का मुख्‍य उद्देश्‍य वृद्ध व्‍यक्तियों को पूरी तरह से आत्‍म-निर्भर नागरिक बनाना है।

इस नीति के कारण कई योजनाएं शुरू की गई हैं जैसे कि –

1. प्राथमिक देख-रेख प्रणाली को सुदृढ़ बनाना, जिससे वे वृद्ध व्‍यक्तियों की स्‍वास्‍थ्‍य रक्षा की जरुरतों को पूरा कर सकें।
2. वृद्ध व्‍यक्तियों की स्‍वास्‍थ्‍य रक्षा के संबंध में चिकित्‍सा और सहायक चिकित्‍सा कार्मिकों को प्रशिक्षण तथा परिचय
3. स्‍वस्‍थ रहते हुए बुढ़ापे की ओर बढ़ने की धारणा को बढ़ावा देना
4. वृद्ध-चिकित्‍सा संबंधी सामग्री के उत्‍पादन और विवरण के लिए समितियों को सहायता.
5. अस्‍पतालों में वृद्ध रोगियों के लिए पृथक लाइनों और शैया के आरक्षण की व्‍यवस्‍था
6. अंत्‍योदय योजना के तहत अधिक से अधिक लोगों को शामिल करना और इस बात पर जोर देना कि वृद्ध व्‍यक्तियों, खासकर जो विस्‍थापित हैं, कमजोर वर्गों से संबंध रखते हैं, के कल्‍याण के लिए सस्‍ती दरों पर भोजन की व्‍यवस्‍था करना।

वृद्ध व्‍यक्तियों के लिए समेकित कार्यक्रम एक ऐसी योजना है जिसमें 31 मार्च, 2007 की स्थिति के अनुसार गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) को परियोजना लागत की 90 प्रतिशत तक की राशि की वित्‍तीय सहायता प्रदान की जाती है। यह राशि वृद्धाश्रम, दिवस देखभाल केंद्र, चलते-फिरते चिकित्‍सा यूनिट स्‍थापित करने और उनकी रखरखाव करने और वृद्ध व्‍यक्तियों की अन्‍य जरुरतों जैसे कि परिवार को प्रबलित और सुदृढ़ बनाना, संबंधित मुद्दों पर जागरूकता लाना और बुढ़ापे को खुशहाल बनाना आदि को पूरा करने के लिए भी कार्य करती है।

सरकार का अन्‍य कार्यक्रम पंचायती राज संस्‍थाओं स्‍वैच्छिक संगठनों और स्‍व-सहायता समूहों की वृद्धाश्रमों और वृद्ध व्‍यक्तियों के लिए बहु सेवा केंद्रों के निर्माण के लिए सहायता प्रदान करने की योजना है। इस योजना में निर्माण के लिए एक बारगी अनुदान प्रदान किया जाता है।

केंद्रीय सरकार स्‍वास्‍थ्‍य योजना केंद्रीय सरकार के कार्यालयों के पेंशनभोगियों को पुरानी बीमारियों के लिए लगातार तीन महीने तक इलाज करने की सुविधा प्रदान करती हैं। अधिक जानकारी के लिए, यहां क्लिक करें।

राष्‍ट्रीय मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम में एल्‍जाइमर और अन्‍य विक्षिप्तियों, पार्किन्‍सन रोग, अवसाद और वृद्धावस्‍था मनोविकार रोग से ग्रस्‍त वरिष्‍ठ नागरिकों की जरुरतों पर ध्‍यान दिया जाता है।

नई योजनाएं

जी हां, वित्‍तीय सुरक्षा की यात्रा यहीं समाप्‍त नहीं हो जाती। केंद्र सरकार वरिष्‍ठ नागरिकों के हित के लिए और नई-नई योजनाएं और स्‍कीमें बना रही है। वर्ष 2007-08 के बजट, में वित्‍त मंत्री ने वरिष्‍ठ नागरिकों को मासिक आय प्रदान करने और नई स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजनाएं विकसित करने का प्रस्‍ताव किया है।

वरिष्‍ठ नागरिकों के हित के लिए यह प्रस्‍ताव किया गया है कि –

* राष्‍ट्रीय आवास बैंक एक 'प्रत्‍यावर्ती गिरवी (रिवर्स मार्टगेज) योजना शुरू करेगा जिसके तहत वह वरिष्‍ठ नागरिक जिसके पास अपना मकान है, मकान को गिरवी रखकर मासिक आय प्राप्‍त कर सकता है। वह वरिष्‍ठ नागरिक उस मकान का स्‍वामी बना रहेगा और ऋण का भुगतान अथवा शोधन किए बिना जीवन भर मकान उसके ही कब्‍जे में रहेगा। गिरवी गारंटी कंपनियों के सृजन की मंजूरी देने के लिए विनियम लागू किए जांएगे।
* राष्‍ट्रीय बीमा कंपनी द्वारा वरिष्‍ठ नागरिकों के लिए एकमात्र स्‍वास्‍थ्‍य बीमा योजना लागू की जाएगी। चिकित्‍सा बीमा खंड में यथा उल्लिखित तीन अन्‍य सरकारी क्षेत्र बीमा कंपनियां भी वरिष्‍ठ नागरिकों के लिए ऐसी ही कोई योजना लागू करेंगी।
* माता-पिता एवं वरिष्‍ठ नागरिक भरण-पोषण विधेयक, 2007 – यह विधेयक हाल ही में संसद में पेश किया गया है। इसमें माता-पिता के भरण-पोषण, वृद्धाश्रमों की स्‍थापना, चिकित्‍सा सुविधा की व्‍यवस्‍था और वरिष्‍ठ नागरिकों के जीवन और सं‍पत्ति की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है।

वरिष्‍ठ नागरिकों के लिए इन नई गतिविधियों का प्रयोजन उन्‍हें बेहतर, शान्तिमय और वित्‍तीय दृष्टि से सुदृढ़ जीवन प्रदान करना है।

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शनिवार, 29 नवंबर 2008

एक माँ का संदेश


राग दरबारी




सुनयना देवी, उम्र 65 साल, गाँव मल्लाहा, जिला आजमगढ़ ने यह संदेश लिख कर नहीं भेजा है। किसी से लिखवाया भी नहीं है। शुक्रवार को वे सपने में आई थीं। उन्होंने टुकड़ों-टुकड़ों में जो-जो कहा, वह मैंने सुबह उठ कर लिख लिया। सुनयना देवी मेरे लिए माँ की तरह हैं। उनके दो बेटे हैं। हैं नहीं, थे। वे मुझे अपना तीसरा बेटा मानती हैं। बहुत पहले मैं गांव गया था। तब उनके पति जीवित थे। वे एक स्कूल में चपरासी थे। एक रात अचानक दोनों की तबीयत खराब हो गई। उलटियाँ, दस्त और बुखार। पड़ोसियों को लग रहा था, दोनों प्राणी चल बसेंगे। मेरा अंदाजा था, खाने से संक्रमण हुआ है। इसकी दवा मैं जानता था। लपक कर कस्बे गया। दवा ला कर उन्हें खिलाई। शाम तक वे ठीक होने लगे। सुनयना देवी ने कहा, तू मेरा तीसरा बेटा है। तब से वे बराबर मेरा हालचाल लेती रहती हैं, हालांकि उसके बाद सिर्फ एक और बाद गाँव जाना हुआ। दूसरी बार गया था, तो वे अकेली थीं। पति गुजर चुके थे।


वही सुनयना देवी सपने में आईं। मुंबई में आतंकवादियों के हमले और हमारे सुरक्षा जवानों द्वारा उनसे मुठभेड़ के दृश्य टेलीविजन पर देखते-देखते मैं सो गया था। सुनयना देवी का चेहरा झुर्रियों से भरा हुआ था। सिर पर पतली-पतली जटाएँ थीं। कपड़े मैले-कुचैले। पर आँखों की चमक बरकरार थी। बहुत पहले गोर्की के उपन्यास 'माँ' पर आधारित नाटक में पावेल की माँ को जैसा देखा था, वैसी ही लग रही थीं। उन्होंने कहा, बेटे, तुम सो रहे हो न। मैं तुम्हें जगाने नहीं आई हूँ। बस तुम्हें देखने का मन था। चली आई।


सपने में मैं उठ कर बैठ गया। सुनयना देवी भी मेरे सामने बैठ गईं। उन्होंने मेरी दोनों हथेलियाँ अपनी दुबली और कमजोर हथेली में ले लीं। बोलीं, बेटा, तुम दिल्ली छोड़ दो। यह बूचड़खाना है। किसी दिन तुम भी मारे जाओगे। उसके बाद मैं बिलकुल बेसहरा हो जाऊँगी।


मैंने कुछ पूछा नहीं। बस उन्हें देखता रहा। वे बोलीं, सुबह बंबई से लछमन का फोन आया था कि मेरा छोटा बेटा रमेसर वीटी स्टेशन पर मारा गया। वह वहाँ भेलपूरी का खोमचा लगाता था। अचानक कुछ दाढ़ीवाले छोकरे आए और अंधाधुंध गोली चलाने लगे। रमेसर सहित सात लोग मारे गए। बहुत-से लोग घायल हुए।


मेरी चेतना मानो सुन्न थी। मैं कुछ बोल नहीं पा रहा था। बस देख और सुन रहा था। सुनयना देवी ने कहा, बड़ा बेटा सुरेसर दो साल पहले दिल्ली में मारा गया था। ऐसी ही घटना हुई थी। सुरेसर सरोजिनी नगर मारकेट में रूमाल, मोजे आदि की फेरी लगाता था। अचानक एक दिन बम फटा और वह उसकी चपेट में आ गया। गाँव के जिस लड़के ने खबर दी, उसने बताया था कि उसके इतने टुकड़े हो गए थे कि लाश पहचानी नहीं जा रही थी। बाएँ हाथ में गोदना था, उसी से पता चला कि सुरेसर ही है। हमारे पास दिल्ली जाने का किराया नहीं था। जाके भी क्या करते। बहुतों की जान गई थी। वैसे ही हमारा बच्चा जाता रहा। सबर कर लिया। चलो, रमेसर तो अभी जिन्दा है।


सुनयना देवी की आवाज में बहुत दर्द था। पर वे रो नहीं रही थीं। कुछ देर चुप रहने के बाद वे कहने लगीं, आज रमेसर भी नहीं रहा। वह भी बड़े भाई की राह लगा। मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है। ये आतंकवादी लड़के भी किसी माँ के जाए होंगे। उन्हें पता नहीं कौन पट्टी पढ़ा रहा है कि वे जान लेने और जान देने पर उतारू हो जाते हैं। सुना है, मनमोहन सिंह बहुत पढ़ा-लिखा आदमी है। वह कुछ करता क्यों नहीं? आडवाणी जी को लोग लोहे का इनसान कहते हैं। वह जब सरकार चला रहा था, उसने भी कुछ नहीं किया। उसी के टाइम में संसद पर हमला हुआ था। अब कहता है, एक बार हमें फिर मौका दो, हम सब ठीक कर देंगे। कैसे ठीक कर दोगे, भइया ? कुछ बताओ तो। हमारी इतनी बड़ी सेना है। उसे देश की रक्षा करने में क्यों नहीं लगा देते? सीमा पर वे झक ही तो मारते होंगे।


सुनयना देवी के चेहरे पर दुख की परत गाढ़ी होती जा रही थी। इस बार वे ज्यादा देर तक चुप रहीं। बोलीं, पहले सोचा, तुम्हें चिट्ठी लिखवा दूँ। समय बहुत खराब है। सरकार-पुलिस सब नाम भर के हैं। जो चाहे, हमारे मुलुक में घुस जाए और ठांय-ठांय करने लगे। ऐसी हालत में गाँव में रहना ही ठीक है। तुम वहीं चलो। पढ़े-लिखे हो। स्कूल खोल देना और बच्चों को पढ़ाना। सरकारी स्कूल में बिलकुल पढ़ाई नहीं होती। तुम्हारा स्कूल चल निकलेगा। फिर मन में आया, चिट्ठी पता नहीं कब पहुँचेगी। चली ही जाऊँ। जो लिखवाना है, सीधे बोल दूँगी। हाँ बेटा, तुम तुरंत दिल्ली छोड़ दो। बड़े शहरों में कभी भी, कुछ भी हो सकता है। तुम्हें बेटा माना है, तो तुम्हारी हिफाजत के बारे में सोचना हमारा फर्ज है। इसी तरह सारे लोग दिल्ली, बंबई छोड़ दें, तो सरकार की अकल ठिकाने लग जाएगी।


सुनयना देवी अभी बोल ही रही थीं कि मेरी आँख खुल गई। मैं चौंक कर उठ बैठा। कमरे में अंधेरा था। क्या यह अंधेरा पूरे मुल्क में हैं, मैं सोचने लगा। फिर उस कमरे में गया जहाँ टीवी है। उसे चला दिया। मुंबई में मुठभेड़ अभी जारी थी।

०००
राजकिशोर

शुक्रवार, 28 नवंबर 2008

रिवॊल्वर रख कर सोए अमिताभ

रिवॊल्वर रख कर सोए अमिताभ



Nov 28, 01:38 pm

नई दिल्ली। मुंबई में हुए आतंकी हमलों से स्तब्ध मेगास्टार अमिताभ बच्चन बृहस्पतिवार रात पहली बार अपने तकिये के नीचे रिवाल्वर रख कर सोए।

बिग बी ने अपने ब्लाग में लिखा है कि जिस तरह आतंकी हमला हुआ उसके बाद बृहस्पतिवार रात मैंने पहली बार ऐसा किया। मुझे उम्मीद है कि दोबारा ऐसा करने की नौबत नहीं आएगी। बृहस्पतिवार रात सोने से पहले मैंने अपनी लाइसेंसशुदा ़32 रिवाल्वर निकाली उसे भरा और अपने तकिये के नीचे रख दिया।

हमलों से व्यथित अमिताभ को बृहस्पतिवार रात नींद भी बहुत मुश्किल से आई। बुधवार को आतंकियों ने मुंबई में कई स्थानों पर हमले किए। बृहस्पतिवार को अमिताभ के पिता और प्रख्यात कवि दिवंगत हरिवंशराय बच्चन का जन्मदिन था। अमिताभ पूरे दिन घर पर रहे और टीवी पर देखते रहे कि सुरक्षा बल आतंकियों को पकड़ने के लिए किस तरह जूझ रहे थे। गौरतलब है कि करीब दो माह पहले दिल्ली में जब बम विस्फोट हुए थे, उस समय अमिताभ के पुत्र अभिषेक अपनी फिल्म द्रोण के प्रमोशन के लिए दिल्ली आए हुए थे। वह कनॉटप्लेस की ओर जा ही रहे थे कि तीव्र धमाका सुनाई दिया। ट्रैफिक जाम में फंसे अभिषेक ने अपने कार चालक से लौटने के लिए कहा। बाद में उन्हें पता चला कि धमाका बम विस्फोट के कारण हुआ था।

कभी रुपहले पर्दे पर अव्यवस्था के खिलाफ आवाज बुलंद करने वाले अमिताभ को एंग्री यंग मैन कहा जाता था। आज इस एंग्री ओल्ड मैन के दिल में उस असमर्थता को लेकर गहरी नाराजगी है, जिसके कारण देश की सुरक्षा खतरे में आ जाती है। ब्लाग में बिग बी ने लिखा है कि मेरी पीड़ा उन बेकसूर और पूरी तरह असुरक्षित देशवासियों को लेकर है जो आतंकी हमलों का सामना कर रहे हैं। मेरा गुस्सा उन अधिकारियों की असमर्थता को लेकर है जिन पर हम सबकी सुरक्षा की जिम्मेदारी है।

आतंकवाद से निपटने की सुरक्षाबलों की कोशिशों की सराहना करते हुए अमिताभ ने लिखा है कि जांबाज अधिकारियों और वीर पुलिसकर्मियों ने हमारे लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। मैं उन्हें केवल सैल्यूट कर सकता हूं और कर्तव्यपालन में उनकी ईमानदारी का सम्मान कर सकता हूं।

बहरहाल, अमिताभ ने इस बात पर नाराजगी जाहिर की है कि बार-बार मुंबई के जज्बे की बात क्यों की जाती है। उन्होंने लिखा है कि त्रासद अनुभवों को छिपाने के लिए इन शब्दों को उछाला जाता है, जबकि हाल के वर्षो में कई शहर इन अनुभवों से दो चार हुए हैं।

मुंबई को दिलवालों की नगरी बताते हुए अमिताभ ने लिखा है ..हां, मुंबई मजबूत है और उसमें बर्दाश्त करने की अपूर्व क्षमता है। ऐसी घटनाओं के आगे उसे झुकना नहीं चाहिए, लेकिन हमें बचाव के लिए बार-बार किसी आवरण का सहारा नहीं लेना चाहिए। इसे हटाइए और सर उठा कर आगे बढ़ जाइए।

टीवी चैनलों ने बिग बी से मुंबई हमलों पर बयान देने के लिए बार-बार अनुरोध किया लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। उन्होंने ब्लाग में लिखा है कि बयानबाजी के लिए कहने के बजाय, मुझे आदेश दीजिए कि हमें हर भारतीय को जगाने और घटना स्थलों की ओर ले जाने की जरूरत है। मैं पहला व्यक्ति होउंगा जो ऐसा करेगा। लेकिन॥ कृपया मुझे बयानबाजी करने के लिए न कहें। इससे दर्शकों के हितों की पूर्ति नहीं होगी।


"जागरण"

सोमवार, 23 जून 2008

मजबूर बुजुर्ग





मजबूर बुजुर्ग

बुज़ुर्ग लक्ष्मीबाई पालेजा के चेहरे पर जगह-जगह चोटों के निशान हैं. उनकी आंखों, नाक और ओंठों पर भी सूजन है.
भारत की औद्योगिक राजधानी मुंबई में रहने वाली 92 साल की लक्ष्मीबाई का आरोप है कि उनके पोते और दामाद ने उनकी पिटाई की है.
वो बताती हैं, "मेरे पोते और दामाद मुझे बुरी तरह मारते जा रहे थे. कहते जा रहे थे, हम तुम्हें मार देंगे."
"मेरी उम्र हो चुकी है और मैं अपना बचाव नहीं कर पा रही थी. मेरे शरीर पर कई जगह से खून निकल रहा था. इसके बाद उन्होंने मुझे किसी गठरी की तरह कार में फेंका और मेरी बेटी के घर लाकर पटक दिया."
लेकिन लक्ष्मी के पोते विनय पालेजा इन आरोपों से इनकार करते हैं.
उनका कहना है, "मैंने तो अपनी दादी को हाथ तक नहीं लगाया। उन्होंने खुद अपने आप को घायल कर लिया है. मुझे नहीं मालूम कि वो हम लोगों के ख़िलाफ़ इस तरह के आरोप क्यों लगा रही हैं."

अपनी बेटी के घर इलाज करा रहीं लक्ष्मीबाई का कहना है कि उनके पास अब कुछ नहीं बचा है.
इस बुज़ुर्ग महिला के पास जो थोड़ी बहुत ज़मीन और सोना था वो उन्होंने अपने और अपने बेटे के इलाज के लिए बेच दिया. लेकिन उनके परिवार ने उनके इलाज के लिए एक पैसा ख़र्च नहीं किया.
ये मामला अब अदालत में जाएगा। लेकिन लगता नहीं कि इंसाफ़ पाने तक लक्ष्मीबाई ज़िंदा रह पाएँ.

टूटते संयुक्त परिवार
भारत में पिछले कुछ सालों में बुज़ुर्गों को मारने-पीटने और घर से निकाल देने के मामले काफ़ी तेज़ी से बढ़े हैं.
भारत जिसकी संस्कृति ये है कि बच्चे अपने बुज़ुर्गों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेते हैं. जहाँ संयुक्त परिवार में एक साथ तीन पीढ़ियाँ एक छत के नीचे हंसी-खुशी अपना जीवन यापन करती हैं.
ये संयुक्त परिवार बुज़ुर्गों के लिए उनके आख़िरी वक्त में एक बड़ा सहारा हुआ करते थे.
लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे अब अपनी ज़िंदगी को बेहतर बनाने के लिए अपने पैतृक घरों को छोड़ रहे हैं.
समाजशास्त्रियों का मानना है कि नौजवानों में आधुनिक तौर-तरीके से जीने की ललक और व्यक्तिगत ज़िंदगी गुज़ारने की सोच की वजह से बुज़ुर्ग इस तरह से जीने के लिए मजबूर हैं.
कई मामलों में तो उन्हें बुरी-बुरी गालियाँ तक सुननी पड़ती हैं।

क़ानून का सहारा
वृद्धों के साथ हो रहे सौतेले बर्ताव को देखते हुए भारत सरकार ने पिछले दिनों एक नया विधेयक भी तैयार किया था.
सरकार ने बुज़ुर्गों और माता-पिता के कल्याण के लिए तैयार किए इस विधेयक के मुताबिक ऐसे बच्चों को तीन महीने की सज़ा भी हो सकती है जो अपने माता-पिता की देखरेख से इनकार करते हैं।

इस क़ानून के मुताबिक अदालत अगर आदेश देती है तो बच्चों को अपने बुज़ुर्गों के लिए भत्ता भी देना होगा.
भारत में बुज़ुर्गों की मदद के लिए काम करने वाली स्वयं सेवी संस्था हेल्पएज इंडिया की शोध बताती है कि अपने परिवार के साथ रह रहे क़रीब 40 प्रतिशत बुज़ुर्गों को मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है.
लेकिन छह में से सिर्फ़ एक मामला ही सामने आ पाता है.
दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ नागरिक सेल के केवल सिंह मानते हैं कि बुज़ुर्ग माता-पिता के लिए अपने बच्चों के ख़िलाफ़ ही शिकायत करना काफ़ी मुश्किल होता है.
वो कहते हैं, "जब इस तरह के बुज़ुर्ग अपने बच्चों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज कराने का फ़ैसला कर लेते हैं तो उनका रिश्ता अपने परिवार से पूरी तरह टूट जाता है."
उनका कहना था, "इस तरह के मामलों में हमेशा क़ानून और जज़्बात के बीच द्वंद्व चलता रहता है।"

मजबूर बुज़ुर्ग
कुछ इसी तरह का मामला दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के इरोड शहर में भी मेरे सामने पेश आया.
यहाँ 75 साल की एक वृद्ध महिला शहर के बाहरी हिस्से में पड़ी पाई गई थी.
लोगों का आरोप था कि उनके नाती और दामाद ने उन्हें वहाँ लाकर डाल दिया था. कुछ दिनों के बाद इस वृद्धा की मौत हो गई थी.
लेकिन उनकी बेटी तुलसी का कहना था, "मेरी माँ कई वर्षों से मेरे साथ रह रही थी लेकिन एक रात वो अचानक बड़बड़ाने लगी और पूरी रात बोलती ही रहीं। हमने उन्हें मना भी किया लेकिन वो नहीं मानीं और अचानक घर छोड़कर चली गईं."

बढ़ते वृद्ध आश्रम
ग़रीबी और रोज़गार की तलाश में बच्चों के बाहर जाने की वजह से बुज़ुर्गों को इस तरह का बर्ताव झेलना पड़ रहा है.
सरकार ने सख्त कानून भी बनाया है लेकिन हल दिखाई नहीं देता.
भारत में सात करोड़ से ज़्यादा आबादी बुज़ुर्गों की है. अगले 25 वर्षों में ये 10 करोड़ तक पहुँच जाएगी.
सरकार ने भी देश भर में 600 वृद्ध आश्रम तैयार कराने को मंज़ूरी दे दी है.
हेल्पएज इंडिया के मैथ्यू चेरियन का मानना है कि क़ानून बनाने से ये समस्या हल नहीं होने वाली है. उनका कहना है,'' आप परिवारों को टूटने से नहीं रोक सकते. हम संयुक्त परिवार का ढांचा दोबारा नहीं विकसित कर सकते. लिहाज़ा हमें और वृद्ध आश्रम बनाने होंगे."
उनका कहना था, " तीस साल पहले जब हेल्पएज इंडिया ने वृद्ध आश्रम तैयार किए थे तो लोगों ने कहा ये तो पश्चिमी तरीका है. लेकिन आज हर कोई मान रहा है ये पश्चिमी तरीका नहीं, ये हक़ीकत है."
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