शनिवार, 13 मार्च 2010

उत्पीड़न से कम उम्र में 'बुढ़ापा'






शोध ने बच्चों की कोशिकीय संरचना का अध्ययन किया


अमरीका मे हुए एक शोध में पता चला है कि वे लोग जो बचपन मे उत्पीड़न का शिकार हुए है उन पर उम्र की छाप जल्दी चढ़ती है.



इस शोध से पता चला है कि जो लोग कम उम्र मे मानसिक उत्पीडन का शिकार होते है उनकी कोशिकीय संरचना मे बदलाव आता है.



बीबीसी संवाददाता जैक इज़्ज़ार्ड का कहना है कि डॉक्टरों को ये लंबे अरसे से पता था जिन लोगों का बचपन किसी भी तरह के उत्पीड़न के साए में बीता है, वे गंभीर भावनात्मक नुक़सान से जूझते हैं.



लेकिन इस नए शोध से एक नई और आश्चर्यजनक बात पता चली है. और वो ये कि इस परिस्थिति में उनकी कोशिकाएँ जल्दी बूढ़ी हो जाती हैं.




ब्राउन विश्वविद्यालय मे काम कर रहे शोधकर्ताओं का ये शोध व्यक्ति के डीएनए अणु पर आधारित है. इस डीएनए अणु का नाम है टिलोमीयर्स है जो हमारे क्रोमोज़ोम यानी गुणसूत्र के अंतिम छोरों को बांधे रखते हैं.

वैज्ञानिक इसकी तुलना जूते के फीतों के किनारे पर लगे प्लासिटक के छोटे टुकड़ों से करते हैं जो उनको खुलने से रोकता है.

जैसे-जैसे हमारी उम्र बढती है, टिलोमीयर्स छोटे होते जाते है और हमारी कोशिकाएँ मरती जाती हैं.


शोध
पहले के शोध से ये पता चलता था कि इस तरह से उम्र बढने की प्रक्रिया सिगरेट पीने या फिर विकिरण के कारण होती थी लेकिन अब इस शोध ने एक नई बात सामने रखी है.



शोध से पता चला है कि ज़िंदगी के शुरुआती दिनों में अगर किसी तरह का मानिसक उत्पीड़न हुआ है तो उसका प्रभाव भी लगभग वैसा ही होता है.



उन वयस्कों मे टिलोमीयर्स जल्दी छोटे हो गए जिनका बचपन खुशहाल नहीं बीता.

हालांकि इस शोध के पूरे प्रभाव पर अभी जानकारी नहीं मिली है और कुछ कोशिकीय जैव वैज्ञानिकों ने भी आगाह किया है कि ये शोध बहुत कम लोगों पर किया गया है इसीलिए परिणामों पर पूरा भरोसा नहीं किया जा सकता है.



लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि जिन लोगों का बचपन कठिन परिस्थितियों में गुज़रा, उनके लिए परेशानी आगे भी खड़ी मिलती है.

1 टिप्पणी:

RISHABHA DEO SHARMA ऋषभदेव शर्मा ने कहा…

shayad iseeliye sadharan bharateeya janata jaldee budha jaatee hai!

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