मजबूर बुजुर्ग
बुज़ुर्ग लक्ष्मीबाई पालेजा के चेहरे पर जगह-जगह चोटों के निशान हैं. उनकी आंखों, नाक और ओंठों पर भी सूजन है.
भारत की औद्योगिक राजधानी मुंबई में रहने वाली 92 साल की लक्ष्मीबाई का आरोप है कि उनके पोते और दामाद ने उनकी पिटाई की है.
वो बताती हैं, "मेरे पोते और दामाद मुझे बुरी तरह मारते जा रहे थे. कहते जा रहे थे, हम तुम्हें मार देंगे."
"मेरी उम्र हो चुकी है और मैं अपना बचाव नहीं कर पा रही थी. मेरे शरीर पर कई जगह से खून निकल रहा था. इसके बाद उन्होंने मुझे किसी गठरी की तरह कार में फेंका और मेरी बेटी के घर लाकर पटक दिया."
लेकिन लक्ष्मी के पोते विनय पालेजा इन आरोपों से इनकार करते हैं.
उनका कहना है, "मैंने तो अपनी दादी को हाथ तक नहीं लगाया। उन्होंने खुद अपने आप को घायल कर लिया है. मुझे नहीं मालूम कि वो हम लोगों के ख़िलाफ़ इस तरह के आरोप क्यों लगा रही हैं."
अपनी बेटी के घर इलाज करा रहीं लक्ष्मीबाई का कहना है कि उनके पास अब कुछ नहीं बचा है.
इस बुज़ुर्ग महिला के पास जो थोड़ी बहुत ज़मीन और सोना था वो उन्होंने अपने और अपने बेटे के इलाज के लिए बेच दिया. लेकिन उनके परिवार ने उनके इलाज के लिए एक पैसा ख़र्च नहीं किया.
ये मामला अब अदालत में जाएगा। लेकिन लगता नहीं कि इंसाफ़ पाने तक लक्ष्मीबाई ज़िंदा रह पाएँ.
टूटते संयुक्त परिवार
भारत में पिछले कुछ सालों में बुज़ुर्गों को मारने-पीटने और घर से निकाल देने के मामले काफ़ी तेज़ी से बढ़े हैं.
भारत जिसकी संस्कृति ये है कि बच्चे अपने बुज़ुर्गों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेते हैं. जहाँ संयुक्त परिवार में एक साथ तीन पीढ़ियाँ एक छत के नीचे हंसी-खुशी अपना जीवन यापन करती हैं.
ये संयुक्त परिवार बुज़ुर्गों के लिए उनके आख़िरी वक्त में एक बड़ा सहारा हुआ करते थे.
लेकिन अब हालात बदल चुके हैं. ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे अब अपनी ज़िंदगी को बेहतर बनाने के लिए अपने पैतृक घरों को छोड़ रहे हैं.
समाजशास्त्रियों का मानना है कि नौजवानों में आधुनिक तौर-तरीके से जीने की ललक और व्यक्तिगत ज़िंदगी गुज़ारने की सोच की वजह से बुज़ुर्ग इस तरह से जीने के लिए मजबूर हैं.
कई मामलों में तो उन्हें बुरी-बुरी गालियाँ तक सुननी पड़ती हैं।
क़ानून का सहारा
वृद्धों के साथ हो रहे सौतेले बर्ताव को देखते हुए भारत सरकार ने पिछले दिनों एक नया विधेयक भी तैयार किया था.
सरकार ने बुज़ुर्गों और माता-पिता के कल्याण के लिए तैयार किए इस विधेयक के मुताबिक ऐसे बच्चों को तीन महीने की सज़ा भी हो सकती है जो अपने माता-पिता की देखरेख से इनकार करते हैं।
इस क़ानून के मुताबिक अदालत अगर आदेश देती है तो बच्चों को अपने बुज़ुर्गों के लिए भत्ता भी देना होगा.
भारत में बुज़ुर्गों की मदद के लिए काम करने वाली स्वयं सेवी संस्था हेल्पएज इंडिया की शोध बताती है कि अपने परिवार के साथ रह रहे क़रीब 40 प्रतिशत बुज़ुर्गों को मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना झेलनी पड़ती है.
लेकिन छह में से सिर्फ़ एक मामला ही सामने आ पाता है.
दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ नागरिक सेल के केवल सिंह मानते हैं कि बुज़ुर्ग माता-पिता के लिए अपने बच्चों के ख़िलाफ़ ही शिकायत करना काफ़ी मुश्किल होता है.
वो कहते हैं, "जब इस तरह के बुज़ुर्ग अपने बच्चों के ख़िलाफ़ आपराधिक मामला दर्ज कराने का फ़ैसला कर लेते हैं तो उनका रिश्ता अपने परिवार से पूरी तरह टूट जाता है."
उनका कहना था, "इस तरह के मामलों में हमेशा क़ानून और जज़्बात के बीच द्वंद्व चलता रहता है।"
मजबूर बुज़ुर्ग
कुछ इसी तरह का मामला दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु के इरोड शहर में भी मेरे सामने पेश आया.
यहाँ 75 साल की एक वृद्ध महिला शहर के बाहरी हिस्से में पड़ी पाई गई थी.
लोगों का आरोप था कि उनके नाती और दामाद ने उन्हें वहाँ लाकर डाल दिया था. कुछ दिनों के बाद इस वृद्धा की मौत हो गई थी.
लेकिन उनकी बेटी तुलसी का कहना था, "मेरी माँ कई वर्षों से मेरे साथ रह रही थी लेकिन एक रात वो अचानक बड़बड़ाने लगी और पूरी रात बोलती ही रहीं। हमने उन्हें मना भी किया लेकिन वो नहीं मानीं और अचानक घर छोड़कर चली गईं."
बढ़ते वृद्ध आश्रम
ग़रीबी और रोज़गार की तलाश में बच्चों के बाहर जाने की वजह से बुज़ुर्गों को इस तरह का बर्ताव झेलना पड़ रहा है.
सरकार ने सख्त कानून भी बनाया है लेकिन हल दिखाई नहीं देता.
भारत में सात करोड़ से ज़्यादा आबादी बुज़ुर्गों की है. अगले 25 वर्षों में ये 10 करोड़ तक पहुँच जाएगी.
सरकार ने भी देश भर में 600 वृद्ध आश्रम तैयार कराने को मंज़ूरी दे दी है.
हेल्पएज इंडिया के मैथ्यू चेरियन का मानना है कि क़ानून बनाने से ये समस्या हल नहीं होने वाली है. उनका कहना है,'' आप परिवारों को टूटने से नहीं रोक सकते. हम संयुक्त परिवार का ढांचा दोबारा नहीं विकसित कर सकते. लिहाज़ा हमें और वृद्ध आश्रम बनाने होंगे."
उनका कहना था, " तीस साल पहले जब हेल्पएज इंडिया ने वृद्ध आश्रम तैयार किए थे तो लोगों ने कहा ये तो पश्चिमी तरीका है. लेकिन आज हर कोई मान रहा है ये पश्चिमी तरीका नहीं, ये हक़ीकत है."