मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

ताकि सनद रहे - 2

December 08, 2008

[चर्चाकारः कविता वाचक्नवी] [25 टिप्पणियाँ]



आज केवल हिन्दीतर चिट्ठों की ही चर्चा का मन बनाया है ताकि हम भाषा के स्तर पर ही सही कम से कम एक विश्वमानव एक भारतीय आत्मा के भावबोध को अपनाने की दिशा में प्रमाण जुटाएँ। केवल एक जानकारी हिन्दी
में है, जो आप सभी हम सभी के भविष्य के लिए बहुत निर्णायक हो सकती है, इसलिए उसे सम्मिलित किया गया है। भारत पर आक्रान्ताओं पड़ोसियों की कुदृष्टि कभी भी युद्ध का रूप ले सकती है, इसका विधिवत अनुमान -प्रमाण हो चुका है। ... कैसे ..? कब ? आप स्वयं पढ़ कर जान जाएँगे।

अभी गत वर्षों में २६ का इतिहास कुछ ऐसा हो गया है कि उसके आंकडे उपलब्ध किए जाएँ तो और भी कई लोमहर्षक तथ्य मिल जाएँ किंतु बंबई के लिए २६ जुलाई का जलप्लावन और २६ नवम्बर का बंबई के रास्ते भारत पर आक्रमण हमारी नई पीढी के भविष्य के लिए कभी भुला सकने वाला दुस्स्वप्न ही हैं।


श्रद्धा ने इसे शब्द देते हुए जो लिखा है वह जाने कितनों की व्यथा है -
करकरे सर, कामते सर यांच्या मृत्युच्या धक्क्यातून आम्ही अजून सावरलेलो नव्हतो..
आपल्याला पोस्ट मिळाल्यावर आपल्यापुढे काय वाढून ठेवले आहे याचाच विचार त्या वर्गातला बहुधा प्रत्येकजण करत होता..
’टॉक लेस..ऍक्ट मोअर’ हे ब्रीदवाक्य असणारे आम्ही २ मिनीटे श्रद्धांजली वाहून अभ्यासाला सुरुवात करतो...
जे घडतंय त्याला आपण बदलवू शकत नसू तर त्याबाबतीत वाचाळायची काहीही गरज नाही...हा घालून दिलेला नियम आम्ही तंतोतंत पाळतो..
पण त्याने विचार करणं थोडीच बंद होतं...???
घट चुकी घटनाओं को अघट करना हमारे बस में नहीं है किंतु, उन पर बात करने को भी प्रतिबन्धित किया जाए तब भी उन पर विचार तो प्रतिबंधित नहीं होते ? मन सब जानता है कि गए हुए लौट कर नहीं आते किंतु क्या करें कि हाथों में लालीपॉप की तरह एके ४७ का नाचना बार बार उन्हें झकझोरता है। मराठी पर पकड़ रखने वाले पूरी संवेदनशीलता से उसे बांच सकते हैं और मूल रचना की पीडा से तादात्म्य स्थापित कर सकते हैं।



नंदीग्रामयूनाईटेड ने असम में हिंसा शान्ति प्रयासों को केन्द्र में रख कर लिखी गई एक अंग्रेजी पुस्तक "Violence and Search for Peace in Karbi Anglong, Assam" by Tom Mangattuthazhe के लोकार्पण की जानकारी देते हुए बताया है कि

The book is a humble attempt to understand the complex issues of Karbi Anglong and is the work of Peace Team, a group of young people known for their interventions in peace building activities. The book is Published by North Eastern Social Research Centre, Guwahati under the guidance of Dr.Walter Fernandez SJ


यह पुस्तक यहां से प्राप्त की जा सकती है।

The price of the book is Rs.60 and is available at , North Eastern Social Research Centre, 110 Kharghuli Road (First Floor), Guwahati – 781004, Assam, India, Email.nesrcghy@gmail.com


विश्व मामलों में रुचि यदि आप रखते हैं तो आपको यह तुलनात्मक वैचारिकी The Most IMPORTANT Video You'll Ever See Part 1 of 8 भी जानकारीसम्पन्न लगेगी --




लॊटरी जैसी चीज से आपका किसी न किसी रूप, भले ही श्रुत या दृश्य या भुक्त माध्यम से पाला अवश्य पडा होगा, उसका कलमुँहापन अंग्रेजी भी भी अपनी उतनी ही भयावहता के साथ विद्यमान है। वस्तुत: वैदिक दर्शन में सब प्रकार की ऐषणाओं का जो वर्गीकरण है वे सब मूलत: तीन वर्गों में विभाजित हैं - वित्तेषणा, पुत्रेषणा व लोकेषणा। यों तो समूचा जगत् ही इनकी पूर्ति के प्रयत्नों के कारण चलायमान है वरना कोई कुछ न करता किंतु मनुष्य जब अत्यंत सामाजिकहितविरोधी कार्य करके भी स्वार्थ की पूर्ति के अधिकतम प्रपंच अपनाता है तो निश्चित रूप से उसका अंत जुए जैसी स्थितियों में पड़े मनुष्य को सामने रख कर आकलित किया जा सकता है।

आप यदि इसका मुख देखना चाहें, कृष्ण पक्ष देखना चाहें तो इन्होंने दिखाने का जो यत्न किया है उसे देख सकते हैं।



आजकल जिस प्रकार बच्चों के आईक्यू आदि की बात होती है या कई बार किसी किसी बच्चे को आपने देखा सुना तो अवश्य होगा कि वह अत्यन्त प्रतिभासंपन्न विशिष्ट बालक है। हमारे यहाँ एक कहावत ही है कि पूत के पाँव पालने में - ही दिखाई दे जाते हैं। क्या हमारी पीढियों के पास पैमाईश का कोई स्थिर पैमाना रहा होगा? वैसे एक पैमाना सभी पर लागू हो भी नहीं सकताक्योंकि कोई बल में विशिष्ट हो सकता है तो कोई ज्ञान में, कोई सामाजिकता में तो कोई निपुणता में, कोई अर्थ संबन्धी मामलों में तो कोई पारिवारिकता के निबाह की असीम धीरता में, कोई राजकाज की कूटनीतिक समझ में तो कोई आध्यात्मिक प्रश्नों की अर्थ गहनता के निवारण में। फिर भी लोग व विशेष रूप से आज के वैज्ञानिक इसके लिए एक निकष बनाने जैसा यत्न तो करते ही हैं ताकि भावी पीढ़ी की अनन्यतम प्रतिभा के चलते उसके लालन-पालन में अत्यन्त सतर्कता बरती जाए। तो आइये जानते हैं कि वे क्या लक्षण, आधार, कसौटियाँ, या प्रतिमान हो सकते हैं जिनके आधार पर कोई बच्चा `गिफ्टेड चाइल्ड' कहा जा सकता और माना जा सकता है , ताकि परिवार में अथवा समाज में, आसपास, सम्बन्धियों में यदि किसी ऐसे बच्चे को आप देखें तो उसके पालन-पोषण के लिए अतिरिक्त सतर्कता उपलब्ध करवाने में सहयोग दे सकें और धरती का आने वाला कल हम से बेहतर हो सके।
- Advanced development - Early Intellectual Talent - A Thirst for Knowledge - Level of Activity ५-Cautionary - Sensitivity - Uneven Development - Can Distinguish Between Reality and Fantasy Early - Early Insight Into Social and Moral Issues १०- Greater Reasoning Power and Manipulation ११- Individuality १२- The Importance of Adults




एक युवा पंजाबी कवि की इस कविता के प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए हमें इसे पढ़ना होगा -

कद तक यारो देस़ मेरे विच,
लहू दीआं नदीआं वहिणगीआं,
हाकम कुरसी थले वड़िआ,
घर घर चीकां पैणगीआं।
कद तक यारो देस़ मेरे विच,
लहू दीआं नदीआं....

आए नित दिन बंब धमाका,
वैण उठा के सिर ते आवे,
दहिस़त दे नाल़ रल़ के बंदा,
आफ़त आपणे आप लिआवे
कद तक दसो बेदोशिआं दीआं,
जानां साथों लैणगीआं?
कद तक यारो देस़ मेरे विच,
लहू दीआं नदीआं....

किंने चिर लई नाच इह तांडव,
तुसीं वी दसो नचणा एं?
निरदोस़ां नूं मार मार के,
आप वी नाल़े मचणा एं?
बस करो हुण, बस करो वे,
लाटां अग दीआं कहिणगीआं
कद तक यारो देस़ मेरे विच,
लहू दीआं नदीआं....

अज इह दिली, कल्ह सन बंबे,
कल्ह किते होऊ होर कोई कारा,
देस़ दा हर इक जीअ है रोंदा,
करो सही कोई रल़ के चारा
वोटां खातिर देस़ मेरे दीआं,
गल़ीआं सुंनीआं रहिणगीआं
कद तक यारो देस़ मेरे विच,
लहू दीआं नदीआं....

रब इह तक के कद खुस़ होणैं?,
'थोनूं' ग़लत इह फहिमी है,
धरम दे नां ते जान है लैणी,
दुनीआं सहिमी सहिमी है
'कंग' कहे की वध हुण इस तों,
सोचां जग नाल़ खहिणगीआं
कद तक यारो देस़ मेरे विच,
लहू दीआं नदीआं....


भारतीय संवेदना अभी आतंक के प्रहार से उबरी नहीं है। मराठी में लिखे गए दो अलग अलग दिन के इस शब्दरूप को देखें, जिसमें इतनी दो टूक बात कही गई है चंद पंक्तियों में कि मुझे स्तब्ध हो जाना पडा| हिन्दी में आशय है कि समुद्र मार्ग से अमुक अमुक आक्रान्ता आए, हमें अधीनस्थ किया, ... तदर्थ शिवाजी ने जलदुर्ग स्थापित किए ... समय आगे बढ़ा .. अब पुन: .... समुद्रमार्ग से ..आदि ( यह अंशभर का हिन्दी रूप है मात्र, पूरा अनुवाद नहीं )


समुद्रमार्गे ब्रिटीश आले, पोर्तुगीज आले, फ्रांन्सीसी आले, सिद्दी , हबशी आले, आपल्यावर राज्य करुन गेले,
आरमाराचे महत्व छत्रपती शिवाजी महाराजांनी ओळखले, आरमाराची स्थापना केली, जलदुर्ग बांधले.
काळ बदलला.
समुद्रमार्गे अतिरेकी येवु लागले. हल्ले करु लागले. आम्ही चर्चा करु लागलो. दोनचार दिवसांनी येरे माझा मागल्या

अलिप्तता

हा असा कसा मी सर्वांपासुन अलिप्त रहायला लागलोय ?
कोणत्याही चांगल्या वाईट प्रसंगात मदतीसाठी सर्वप्रथम धावुन जाणारा मी आता कोणाकडेही जावेसे वाटत नाही, जात नाही , का बरे अशी मनाची अवस्था होत चालली आहे?
ही अलिप्तता आली कुठुन ? का ? आणि कशासाठी ?


राजनीति करने वाले कितना भी सामंतवादी रवैय्या अपना कर प्रदेशों की पारस्परिकता में दरार डालते रहे किंतु मराठी का आम आदमी क्या सोचता है वह इस एक वाक्य से पता चलता है कि उसके लिए महाराष्ट्र या देश का समूचा अस्तित्व कोई दो अलग चीजें नहीं हैं ---


केवळ महाराष्ट्रच नाही तर संपूर्ण देश वेठीला धरणाऱ्या, दोनशे लोकांचे बळी घेणाऱ्या अतिरेकी हल्ल्यानंतरही


इस राष्ट्रीय आतंक के लिए एक दम नई तर्ज़ पर कुछ नीतियाँ व तैयारियाँ हो चुकी हैं और हमला कभी भी हो सकता है। इसकी पुष्टि कर दे गई है । पूरा जानने के लिए आप यहाँ जाएँ
अब फैसला हो चुका है। भारतीय सेनाएं और कमांडो दस्ते पाकिस्तान में मौजूद आतंकवादी शिविरों पर सीधे हमला बोल कर उन्हें नष्ट करने के लिए तैयार है। इस काम में इजराइल की गुप्तचर एजेंसी मोसाद ने भी मदद करने की सहमति दे दी है। दरअसल भारत सरकार ने अभी इस बारे में एक शब्द भी नहीं कहा है लेकिन इजराइल की राजधानी तेल अबीव में वहां के सुरक्षा मंत्रालय ने इस बात की पुष्टि कर दी है कि भारत सरकार के साथ उसकी बातचीत चल रही है।

अंत में / मेरी पसंद / समय की माँग

प्रयाण गीत

हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती -
स्वयंप्रभा समुज्ज्वला स्वतंत्रता पुकारती -
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ हैं - बढ़े चलो बढ़े चलो।

असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी।
सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी।
अराति सैन्य सिंधु में - सुबाड़वाग्नि से जलो,
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो बढ़े चलो।
- जयशंकर प्रसाद

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25 टिप्पणियाँ

डा. अमर कुमार said... @ December 08, 2008 10:32 AM



हिन्दी ब्लागिंग की श्रीवृद्धि पर एक प्रतीकात्मक चर्चा..
हो सकता है कि, आज की चर्चा रसहीन लगे, पर संदर्भहीन कतई नहीं है !
यदि विदेशी कवियों के रचनाओं पर मगन होकर भावानुवाद प्रस्तुत किया जा सकता है, तो..
यह तो अपने ' जननी-जन्मभूमि ' पर रची गई बेहतरीन सामयिक रचनायें हैं !
समझ और सिद्धांत की विवेचना फिर कभी..
सामयिकी के लिहाज़ से बेहतरीन चर्चा !

विवेक सिंह said... @ December 08, 2008 10:45 AM

ஆப்படிஆ ? ரும்பை நல்ல இரகத . நந்ரி

डॉ .अनुराग said... @ December 08, 2008 11:28 AM

कविता जी आज आपने चर्चा को एक आयाम दिया है ,जाहिर है जो हमारे समाज में घटेगा ...कागजो में भी दाखिल होगा ..समय भी ऐसा है की ब्लॉग भी इसी लेखकीय दखल का पैरोकार है....ओर बतोर ब्लोगर कई बार हमारा नैतिक दायित्व भी बनता है की हम निजी त्रासिदियो से बाहर निकलकर उन आवाजो में अपनी आवाज मिलाये ताकि सनद रहे

cmpershad said... @ December 08, 2008 11:58 AM

सारगर्भित चर्चा। बधाई कि आपने सभी भाषाओं को हिंदी से जोडने की पहल की है। सही माने में चिठों की चर्चा कही जाएगी। यह चर्चा शायद इस लिए ‘रसहीन’ लगी कि हमें भाषा को समझने में कठिनाई हुई, परंतु इस पहल पर लोग अनुवाद के माध्यम से भी इस चर्चा में जुडेंगे और इसे अधिक विस्तार मिलेगा, ऐसी आशा तो की ही जानी चाहिए। जैसा कि विवेक सिंहजी ने तमिल में अपनी टिप्पणी दी है, यदि साथ ही हिंदीकरण भी कर देता तो सुविधा होती। यह आगे फिर कभी....शुरुआत तो हो ही गई है...पुनःबधाई कविताजी।

ऋषभ said... @ December 08, 2008 12:10 PM

अत्यन्त सामयिक. सटीक. सारगर्भित.

मराठी और पंजाबी के सन्दर्भ यह विश्वास दिलाते हैं कि आतंकवाद के प्रतिकार पर हम सब एक ही तरह सोच रहे हैं -- सबसे ऊपर राष्ट्र !

प्रसाद जी के प्रयाण गीत की प्रस्तुति पर साधुवाद.

गिरीश बिल्लोरे "मुकुल" said... @ December 08, 2008 12:21 PM

कविता जी
संपृक्त आलेख सन्दर्भों के साथ
उत्कृष्ट पोस्ट के लिए आभारी हूँ

Rachna Singh said... @ December 08, 2008 12:24 PM

उत्कृष्ट पोस्ट

Raviratlami said... @ December 08, 2008 12:31 PM

I loved this new incarnation of Charcha. BIG Thanks to you!

Gyan Dutt Pandey said... @ December 08, 2008 12:59 PM

इम्प्रेसिव! आपने अन्य देशज भाषाओं के ब्लॉगों की चर्चा की, यह तो अनूठी बात रही!

Udan Tashtari said... @ December 08, 2008 3:09 PM

बहुत सधी हुई सटीक चर्चा. आपको बधाई.

अंत में जयशांकर प्रसाद जी की पंक्तियाँ भी बहुत भाई..जितनी बार पढ़ो-कम है. आभार आपका.

ताऊ रामपुरिया said... @ December 08, 2008 5:44 PM

एक बहुत ही शानदार परम्परा की शुरुआत की आपने ! बहुत बहुत धन्यवाद आपको !

रामराम !

प्रवीण त्रिवेदी...प्राइमरी का मास्टर said... @ December 08, 2008 9:00 PM

चिट्ठा चर्चा को यह नया स्वरुप देने के लिए धन्यवाद !!

cmpershad said... @ December 08, 2008 9:09 PM

आज की चर्चा तो होती रहेगी पर कल की चर्चा जैसे ज़हन में अब भी घूम रही है। द्विवेदीजी ने कहा था कि हिंदी का समूचा लेखन खुला रखा जाय। वो तो खुला है ही, खुला भी और प्रोटेक्टेड भी। इस बात को डॊ.ऋषभ देव शर्मा जी ने भी रेखांकित किया है। यहां हमें लेखक के हितों के लिए भी खडा होना ज़रूरी है।
>शर्माजी ने एक और विशेष बात की ओर ध्यान दिलाया कि कालजयी साहित्य को भी नेट पर लाने की आवश्यकता है और जो ब्लाग यह कर रहे हैं, वे निश्चय ही हिंदी की सेवा कर रहे हैं। आज की चर्चा में प्रसादजी की कालजयी कविता इसका उदाहरण है। हर कोई अपनी ढोल तो पीटता है, कोई तो हो जो उन दिग्गजों की बात भी करे जो इतिहास के पन्नों में चमक रहे हैं।
It is a matter of concern that writers should attack on copyrights as swaritramanyu has rightly said that the infringement of copyrights should not be labelled as sharing knowledge. Yes, there is difference between sharing and copying [theft].
Dr. Amar has rightly claimed that it is the birthright of blogger [as of any writer] to safeguard his writings. I don't think Rachnaji's fears of `outcasting' will come true as the members of this blog are matured enough to understood the seriousness of the issue which was raised in probably a lightheared manner by Sri Anupji.
एक बार पुनः कविताजी को आज के सारगर्भित चर्चा के लिए आभार।

Rachna Singh said... @ December 08, 2008 9:57 PM

@cmpershad
"I believe that, it should not make any difference by ourselves being outcasted from ' Charcha, ' to any serious reader "
This is Dr Amars view , i merely quoted his lines and gave my view after that as
"Who cares really , check the counter statistics and see how many came to your blog thru charcha . links are there but who really clicks thru them to go to the blog "
I hp no confusion is now as to "Rachnaji's fears of `outcasting' will come true " in your comment

cmpershad said... @ December 08, 2008 10:12 PM

thanks for correcting me rachnaji.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said... @ December 08, 2008 10:44 PM

बढ़े चलो बढ़े चलो।
अलिप्तता आली कुठुन ? का ? आणि कशासाठी ?

कद तक यारो देस़ मेरे विच,
लहू दीआं नदीआं....
"Violence and Search for Peace in Karbi Anglong, Assam" by Tom Mangattuthazhe
हम भाषा के स्तर पर ही सही कम से कम एक विश्वमानव व एक भारतीय आत्मा के भावबोध को अपनाने की दिशा में प्रमाण जुटाएँ।
यूँ ही,अनूठी और आम्खेँ खोल देनेवाली चर्चा करती रहीये कविता जी क्या कहने !! ~~
स स्नेह,
- लावण्या

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said... @ December 08, 2008 10:54 PM

अनूठी चर्चा का धन्यवाद।

सतीश सक्सेना said... @ December 08, 2008 10:57 PM

बहुत प्रभावशाली लेख, शायद आप बेजोड़ हैं यहाँ ! शुभकामनाएं आदर सहित !

डा. अमर कुमार said... @ December 08, 2008 11:08 PM

अरे भाई चन्द्रमौलेश्वर जी, लगता है आप अब तक इस मुद्दे पर उद्वेलित हैं..
बहस तो ज़ारी रहनी चाहिये, पर एक दिन में ही तो कोई निर्णायक सर्वसम्मति तो बन नहीं सकती, न ?
चलिये आप मेरे साथ हैं, आपकी सदाशयता एवं प्रतिबद्धत्ता के लिये आभारी हूँ..
पर, यह कोई आर पार की लड़ाई भी नहीं है !
मेरे विद्वान मित्रों नें, मेरे किसी भी ब्लागपृष्ठ के सबसे नीचे दिया गया स्पष्टीकरण नहीं देखा होगा !
पर, जो है.. सो है !

Shiv Kumar Mishra said... @ December 08, 2008 11:09 PM

ये चर्चा चिट्ठाचर्चा के सफर में मील का पत्थर है. आपने बहुत ही बढ़िया कोशिश की है. इसके लिए आपको साधुवाद.

कविता वाचक्नवी said... @ December 09, 2008 12:34 AM

- सर्वप्रथम इस प्रविष्टि के लिए अपना मत व्यक्त करने व स्वीकार्यता देने के लिए आप सभी के प्रति अपना आभार व्यक्त करती हूँ। स्नेह बनाए रखें।

- अभी अपनी पोस्ट को इस समय देखा तो आश्चर्य हुआ,पोस्ट का शीर्षक (सम्भवत: संवेदनशील मुद्दा होने के कारण मोडरेड कर के) बदला हुआ पाया।
प्रविष्टि का अलाईनमेंट भी मेरे द्वारा किए गए से इतर कर के फ़्लश लेफ़्ट किया गया पाया,
और जिस वीडियो को मैंने इसमें प्रयोग किया था, उसे हटा हुआ पाया।
हत्प्रभ हूँ। तुरन्त एडिट करके नए सिरे से शीर्षक के अतिरिक्त शेष सब मैंने पूर्ववत् कर दिए हैं।
यदि मुझे प्रविष्टि को कम्पोज़ कर के केवल ‘सेव एस अ ड्राफ़्ट’
में रखना है और बिना मॊडरेशन पोस्ट नहीं करना, तो कॄपया सूचित करें किन्तु कृपया मेरे श्रम को ऐसे सम्पादित न किया जाए कि मूल सामग्री हट जाए।
आशा है, चर्चादल इसे अन्यथा नहीं लेगा और सदाशयी बना रहेगा।

कविता वाचक्नवी said... @ December 09, 2008 12:50 AM

और हाँ, नंदीग्रामायूनाईटेड के हवाले से असम पर केन्दित जिस पुस्तक की चर्चा मैंने की थी, उसके प्रकाशक, प्रकाशनस्थल,पुस्तक का मूल्य,व सम्पर्क आदि वाला‘कोट’ भी नदारद है।

कविता वाचक्नवी said... @ December 09, 2008 12:57 AM

यदि मेरे चर्चा करने पर किसी को भी आपत्ति है तो वे कृपया मुझसे सीधे व स्पष्ट कह सकते हैं, मैं कतई अन्यथा नहीं लूँगी, किन्तु इस प्रकार से मेरे श्रम को नष्ट करने व बिगाड़ने का औचित्य समझ नहीं पाई हूँ। अगली चर्चा मेरे द्वारा तभी संभव होगी, जब मुझे पूर्णत: आश्वस्त किया जाए कि भविष्य़ में मेरी पोस्ट के साथ ऐसी छे़ड़छाड़ नहीं होगी। तब तक के लिए मेरे इस साप्ताहिक स्तम्भ को सभी स्थगित ही समझें।

अनूप शुक्ल said... @ December 09, 2008 9:15 AM

कविताजी, अभी सुबह आपकी टिप्पणियां देखीं।

चिट्ठाचर्चा में कोई भी बदलाव या तो मैं कर सकता हूं या फ़िर देबाशीष। मैंने कोई बदलाव नहीं किया। इसलिये मैंने देबाशीष से पता किया। उन्होंने बताया कि HTML ठीक करने के लिये कुछ बदलाव उन्होंने किये थे। उसी चक्कर में कुछ सामग्री भी हट गयी।

पोस्ट का शीर्षक जरूर देबू ने बदला, कुछ सनसनीखेज सा होने के कारण। बाकी बदलाव अनजाने में हुये। इस बारे में देबू ने आपको अलग से मेल भी लिखा है।

बेहतरी की कोशिश में जो बदलाव देबू ने किये उसकी आपको जानकारी न होने के कारण आपको जो कष्ट हुआ उसके लिये मैं अफ़सोस व्यक्त करता हूं।

मैं आपको आश्वस्त करता हूं कि भविष्य में आपकी पोस्ट में कोई भी बदलाव या छेड़छाड़ नहीं होगी।

डा. अमर कुमार said... @ December 09, 2008 11:14 AM


ग़लतफ़ैमिली ख़त्म हुई..
अब सहीफ़ैमिली क़ायम करो..
बक़र-ए-ईद मुबारक़॥ साधो साधो

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